Ramcharit manas kakbhushundi

जब राम चरित मानस पढ़ा तो श्री राम जी के बाल्यकाल का एक छोटा सा टुकड़ा आज दिमाग में अचानक ही आया।
भगवान श्री राम जी की माँ कौशल्या भगवान राम को महल के आंगन में खाना खिला रही है।
दूर एक कौंवे की पैनी नजर रोटी पर थी।
बाल श्री राम ने माता कौशल्या से रोटी अपने हाथ में ले ली। अब कौंवे को बस यह आस थी कि कब माता कौशल्या हटे और बालक से रोटी लेकर वह दूर गगन में ओझल हो जाये।
भगवान श्री राम कि यह बाल लीला कहाँ उस कौंवे को पता।
माता जैसे ही किसी काम से महल में गई वह कौवा रोटी पर झपटा।
पर रोटी क्या मिलता वह तो भगवान श्री राम के मुँह खोलते ही उनके मुँह के अंदर चला गया।
वह कौवा इस आश्चर्य चकित घटना से कुछ भी समझ न पाया।
वह उस अंधकार में किस तरफ जाए या किधर न जाये कुछ न समझ सका।
जिस तरफ भी आगे जाता सैकड़ो ब्रह्मांड दिखाई देने लगते।
जिस ब्रह्मांड में उतरता वहां फिर कई पृथ्वी और जिस पृथ्वी पर जाता वहां कई माता कौशल्या और अनगिनत भगवान श्री राम और स्वयं को भी देखा।
कौवा इस तरह कई हजारों वर्षों तक श्री राम के मुख के ब्रह्मांड में भ्रमण करता ही रहा।
अंततः जब भगवान श्री राम के भक्ति का मार्ग जब उसे मिला तो श्री राम ने मुंह खोला और कौवे को बाहर निकल सका।
निकलने के बाद वह कौवा भगवान श्री राम की भक्ति में ऐसा रमा कि हिमालय के पावन घाटी में आज भी आश्रम बना सभी को भगवान श्री राम की गाथा सुनाता है।
इसी कौवे को सभी " काकभुशुण्डी" के नाम से जानते है।
ऐसे ही अनगिनत ब्रह्मांड में हमारे और आपके जैसे अन्य लोग एक ही पहचान के साथ एक ही समय में एक ही जैसे या अलग कार्य कर रहे होंगे।
मेरे जैसी सुजाता मिश्रा कई और कहीं और भी।
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By sujata mishra
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