Change own selves Article

आज का दौर ऐसा है, सही कदम और सही फैसला लेना भी बहुत मुश्किल है। जो चीजे सही है, उन्हें साबित करना उतना ही मुश्किल।
कई लोग ऐसे है जिनकी लोग भलाई करें तो भी उन्हें उसमें खोट लगती है।
और बिगाड़ने वाले हितैसी।
फर्क बस चरित्र का है।
चरित्र
भारतीय परिवेश में हमेशा चरित्र को वरीयता दी गई है।
चरित्र को दृढ़ कर लिया तो हर काम कदमों को चूमती है।
चरित्र बनना और बिगड़ना विचारों के बीजों का रूपांतरण है।
अगर मैं एक बच्चे को रोज सिर्फ यह बोलने को कह दूं कि
"मैं नही पढूंगा"
और दूसरे बच्चे से रोज बुलवाऊं।
"मैं रोज पढ़ूँगा"

कुछ दिन बाद फर्क स्वयं दिख जाएगा।

बीज डल चुके थे। पेड़ बन कर एक विचार एक बच्चे को न पढ़ने व दूसरे को पढ़ने में बाध्य करेगा।

वही 18 साल के बाद किसी भी बदलाव को लाना मुश्किल है क्योंकि बीज तबतक परिपक्व हो जाते है।
उस समय बदलाव कोई और नही ला सकता।आप जितना कोशिश करोगे उतना ही विरोधाभास मिलेगा।
चीजे बदलना 18 के बाद स्वयं पर निर्भर करता है।

सिर्फ खुद से खुद को बदला जा सकता है। कठिन है पर नामुमकिन नही।
By sujata mishra
#change #oneself #child #adult #depend #independent #impossible #possible #against

Comments

Popular posts from this blog

Vivid Techno: hindi poem - इतनी दूर चले आये

How to register to vote in india

YOGA VS GYM