moral story on care

एक बार एक ब्राह्मण के घर नन्हा सा फूल खिला।
वह फूल इतना प्यारा था कि जिसकी नजर पड़ती वही उसे लेना चाहता।
ब्राह्मण अपने उस बच्चे को सबसे छुपा कर रखता कि किसी की नजर न लगे।
ब्राह्मण और ब्राह्मणी दोनों उसके लालन पालन में विशेष ध्यान रखते।
पिता के सभी कर्तव्यों को ब्राह्मण तो ब्राह्मणी माँ की ममता में कोई कमी नही रखते।
वह पुत्र भी धीरे 2 बड़ा हो रहा था। घर में इतना प्यार था कि समृद्धि खुद उनके द्वार पर दस्तक देती।
जीवन का चरम उत्कर्ष उनके घर पर था। लेकिन दिन बदलने थे, एक जैसे दिन तो किसी के नही होते।
ब्राह्मण को अन्य लोग ईर्ष्यावश अब पहले जैसे सत्कार नही देते थे।
ब्राह्मणी और ब्राह्मण अपने आपको कष्ट देकर भी पुत्र को सही पालन दे रहे थे।
एक बार घर में खाने को कुछ भी नही था और ब्राह्मण उसकी पूर्ति हेतु बाहर गया था।
देर होने की वजह से ब्राह्मणी विचलित हो स्वयं भी किसी कार्य की तलाश में बाहर निकलने को हुई तो उसने पुत्र से कहा पुत्र जब तक मैं या तुम्हारे पिता न आये इस घर से बाहर न निकलना।
पुत्र ने मां को वचन दे दिया। ब्राह्मणी चली गई।
इधर पास के पड़ोसी ने वचन देते हुए बातें सुन ली कि घर में बालक अकेला है और कुछ भी होगा बच्चा घर से बाहर नही आएगा।
उनके दिमाग में आया कि ये परिवार कितना खुशहाल हैं इस गरीबी में भी किसी को किसी से कोई शिकायत नही।
क्यों न इस घर में आग लगा दे बच्चा घर से बाहर तो निकलेगा नही वह जल जाएगा।
और आग लगा दी।

पहले फ़ोन नही होता था।
पर हमारे आजकल के माता पिता से ज्यादा संवेदना होती थी।
मुझे याद है बचपन में या अभी भी हमारे घर में किसी की तबियत खराब हो या कोई परेशानी हो तो बड़ों को अपने आप पता चल जाता है।

प्यार जैसी संवेदना जहाँ जिस घर में हो वह इस तरह की तुच्छ परेशानियों का सामना बड़ी ही आसानी से कर लेते है।

अपनी संवेदनाओं को जगाए दूसरों के प्रति।
सब कुछ बस में है हमारे हम दूर हो किसी के या पास।

By sujata mishra
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