Poem for struggling human

टूटी हुई मन की यह पीड़ा
टूट टूट बिखराये आंसू।
प्रीत प्रीत ये कैसी प्रीत है
तन तड़पत मन पछताए।
सूनी -2 गलियारों की ओर
ध्वनि तेरी ही आये मन न
तोड़ मुझे न छोड़ मुझे न
भूल मुझे न संग कोई है।
वेद भेद न भय न कमी है
जीवन के राहों से बनी हैं
तेरी मेरी एक ही राह जुड़ी
अंतर मन सुध भूल रहा जब
संग न तू संघर्षशील हो तब
जब हम होंगे एक एक हाँ
तब जीवन पथ पर नवक्रान्ति
बदले सोच संसर्ग और भ्रांति
कर्तव्य मार्ग हर पल प्रहार
टूटे पड़े मन के भले मन के
है भले वो टूटे पड़े टूटे पड़े।
By sujata mishra
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