Story - विश्वास की सकारात्मकता
एक राजा था। उसके राज्य में सभी प्रजा सुखी थी। दरिद्रता निर्धनता दुःख इन सब का आभाव सा था। राजा अपनी प्रजा और प्रजा राजा के प्रति ईमानदारी पूर्वक कार्यरत थे।
पर कहते है सुख और दुःख की धूप छाँव सभी के जीवन में लगे रहते है।
अचानक ही एक दिन तेज बारिश शुरू हो गई जो रुकने का नाम ही नही ले रही थी।
तेज बारिश की वजह से फसल तो नष्ट हो ही चुके थे अब लोगों के घर भी बहने लगे।
राजा ने सोचा जब तक बारिश रुक नही जाती जरूरतमंदों को राज महल में जगह दी जाये।
सारे राज्य में घोषणा करवा दी गई जिन लोगों के घर बाह चुके थे वे राज महल में आ गैये। पर बारिश तो अब भी उफ़ान पर था लगता था राज्य का सब कुछ ले जाने को तैयार बैठा था।
राजा और प्रजा सभी परेशान थे कि सभी तरह की दैवीय आशीर्वाद मिले राज्य को ये क्या हो रहा है।
कभी राजा ने किसी का अनिष्ट नही किया प्रजा सभी तरह से संतुष्ट थी। सुख समृद्धि हर जगह व्याप्त थी फिर यह अनिष्ट क्यूँ।
बारिश ने ऐसी भयंकर स्थिति कर ली कि सारी प्रजा को राजप्रासाद में शरण लेनी पड़ी।
राजा ने सभी प्रजा को एक जगह बुलवाया और कहा - जैसा कि आप सब देख रहे है इस आपदा से मैं जितना कर सकता था वो कर रहा हूँ , हो सकता है आने वाले समय में ये राजप्रासाद भी इस वर्षा का ग्रास बन जाये।
लेकिन एक न एक दिन ये बारिश रुक जायेगी। और सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा।
उस दिन के लिए हम सब होंगे या नही यह परमात्मा जाने।
इस समय आपमें से किसी के पास कोई विचार हो तो बताये?
सभी राजा कि यह घोषणा सुनकर शतब्ध थे।
पर एक छोटे से बालक ने उठकर कहा - महाराज आपने इस संकट कि घडी में जो किया वह सच में सभी को जीवन दान दिया है। आप चाहते तो सिर्फ अपनी जान बचाकर आप इस राज्य को छोड़ दूसरे राज्य जा सकते है।
आपने अपने राज महल में रहने को जगह देकर हम सभीको इसी जन्म में राजभोग दे दिया।
इस बारिश से हमारे घर हमारा सर्वश्व जो हमारे कर्मो द्वारा हमे मिला था वो नष्ट हो गया हो पर इस बारिश से हमे आपके कर्मों का भोग हो गया।
By sujata mishra
Vividfoundation. org
पर कहते है सुख और दुःख की धूप छाँव सभी के जीवन में लगे रहते है।
अचानक ही एक दिन तेज बारिश शुरू हो गई जो रुकने का नाम ही नही ले रही थी।
तेज बारिश की वजह से फसल तो नष्ट हो ही चुके थे अब लोगों के घर भी बहने लगे।
राजा ने सोचा जब तक बारिश रुक नही जाती जरूरतमंदों को राज महल में जगह दी जाये।
सारे राज्य में घोषणा करवा दी गई जिन लोगों के घर बाह चुके थे वे राज महल में आ गैये। पर बारिश तो अब भी उफ़ान पर था लगता था राज्य का सब कुछ ले जाने को तैयार बैठा था।
राजा और प्रजा सभी परेशान थे कि सभी तरह की दैवीय आशीर्वाद मिले राज्य को ये क्या हो रहा है।
कभी राजा ने किसी का अनिष्ट नही किया प्रजा सभी तरह से संतुष्ट थी। सुख समृद्धि हर जगह व्याप्त थी फिर यह अनिष्ट क्यूँ।
बारिश ने ऐसी भयंकर स्थिति कर ली कि सारी प्रजा को राजप्रासाद में शरण लेनी पड़ी।
राजा ने सभी प्रजा को एक जगह बुलवाया और कहा - जैसा कि आप सब देख रहे है इस आपदा से मैं जितना कर सकता था वो कर रहा हूँ , हो सकता है आने वाले समय में ये राजप्रासाद भी इस वर्षा का ग्रास बन जाये।
लेकिन एक न एक दिन ये बारिश रुक जायेगी। और सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा।
उस दिन के लिए हम सब होंगे या नही यह परमात्मा जाने।
इस समय आपमें से किसी के पास कोई विचार हो तो बताये?
सभी राजा कि यह घोषणा सुनकर शतब्ध थे।
पर एक छोटे से बालक ने उठकर कहा - महाराज आपने इस संकट कि घडी में जो किया वह सच में सभी को जीवन दान दिया है। आप चाहते तो सिर्फ अपनी जान बचाकर आप इस राज्य को छोड़ दूसरे राज्य जा सकते है।
आपने अपने राज महल में रहने को जगह देकर हम सभीको इसी जन्म में राजभोग दे दिया।
इस बारिश से हमारे घर हमारा सर्वश्व जो हमारे कर्मो द्वारा हमे मिला था वो नष्ट हो गया हो पर इस बारिश से हमे आपके कर्मों का भोग हो गया।
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