hindi poem - तू दिखता है शामों शहर
hindi poem - तू दिखता है शामों शहर
तू दिखता है शामों शहर फिर भी अकेला है वो
वो जो बातों से जीत ले जीत लेता है सबका मन
मन की तेरे मंदिर में ये कौन सा दिया किसका है
है वो किनारा दूर अभी क्यों कर इसे छोड़ा है यहां
यहाँ मेरी मंजिले मेरी तक़दीर जहाँ लौट आएगा पल
पल हर क्षण जहाँ वो बीते हुए कल लौटा ले आया
जहाँ से चले थे खत्म भी वही पर लो आज हुआ।
बरसों कदम चलते है फिर भी थकते नही जब से
तुम्हारी लेखनी से मेरी कदमों की कहानियाँ बनी।
By sujata mishra
तू दिखता है शामों शहर फिर भी अकेला है वो
वो जो बातों से जीत ले जीत लेता है सबका मन
मन की तेरे मंदिर में ये कौन सा दिया किसका है
है वो किनारा दूर अभी क्यों कर इसे छोड़ा है यहां
यहाँ मेरी मंजिले मेरी तक़दीर जहाँ लौट आएगा पल
पल हर क्षण जहाँ वो बीते हुए कल लौटा ले आया
जहाँ से चले थे खत्म भी वही पर लो आज हुआ।
बरसों कदम चलते है फिर भी थकते नही जब से
तुम्हारी लेखनी से मेरी कदमों की कहानियाँ बनी।
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