Poem hindi - मृत्यु न समझा जब तक
Poem hindi - मृत्यु न समझा जब तक
मृत्यु न समझा जब तक किसी ने स्वयं न देखा।
दुःख न होगा जब तक किसी ने स्वयं न भोगा।
पथ बदलना आ जाता है जब पथ पर काटें चुभे।
सत्य कहना आ जाये जब चोट इस मन पर लगे।
रखा है क्या समेट कर जो कह सके ये तेरा मेरा है
नाम पर इतरा रहा तो छल का खेल एक खेला है।
मन्त्रणा ये सुन रहा जो वो मौन मन का चेहरा है ।
गहरे गहरे रात का ही हा तुमसे ही बनता सवेरा है।
बदलती समझती सुनती बनती भोगती मन ये मैला।
By sujata mishra
मृत्यु न समझा जब तक किसी ने स्वयं न देखा।
दुःख न होगा जब तक किसी ने स्वयं न भोगा।
पथ बदलना आ जाता है जब पथ पर काटें चुभे।
सत्य कहना आ जाये जब चोट इस मन पर लगे।
रखा है क्या समेट कर जो कह सके ये तेरा मेरा है
नाम पर इतरा रहा तो छल का खेल एक खेला है।
मन्त्रणा ये सुन रहा जो वो मौन मन का चेहरा है ।
गहरे गहरे रात का ही हा तुमसे ही बनता सवेरा है।
बदलती समझती सुनती बनती भोगती मन ये मैला।
By sujata mishra
Comments
Post a Comment
Thanks for your feed back we get you back