Hindi poem - हर रोज सिपाही की ख़ामोशी
हर रोज सिपाही की ख़ामोशी
कब तक हम स्वीकार करे।
आओ सब मिलकर भारत में
इसका हम प्रतिकार करे।
यूँ बलिदानों की भूमि भी
रक्तरंजित हो जाती है।
जैसे आँखों का नमियां
भी आंसूं के न मोल सहे।
टूटे पत्ते साखों से उस ओर
चले उस ओर चले।
छवि को धूमिल न करना वो
मातृभूमि पर बलिदान हुए।
सब कुछ वो न्योछावर कर
हमको वो कर्जदार करे।
सत सत् नमन।
By sujata mishra
कब तक हम स्वीकार करे।
आओ सब मिलकर भारत में
इसका हम प्रतिकार करे।
यूँ बलिदानों की भूमि भी
रक्तरंजित हो जाती है।
जैसे आँखों का नमियां
भी आंसूं के न मोल सहे।
टूटे पत्ते साखों से उस ओर
चले उस ओर चले।
छवि को धूमिल न करना वो
मातृभूमि पर बलिदान हुए।
सब कुछ वो न्योछावर कर
हमको वो कर्जदार करे।
सत सत् नमन।
By sujata mishra
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