और कोरोना कहलाऊंगा।
सबके साथ धूमिल हो रहा। पानी के साथ बहता तो धूप से सूखकर हवाओं में उड़ता।
कभी इधर कभी उधर।
एक छोटा कण।
अस्तित्व विहीन कहलाता। कभी चट्टानों से लड़ जाता वह
रूठकर पैदल चलता ।
कभी इधर कभी उधर।
एक छोटा कण।
तू निर्जीव तू है तत्व हीन। आखों से जो दिखता तक नहीं वह
मुस्काता पल पल मर।
कभी इधर कभी उधर।
एक छोटा कण।
खुदको जो मै विषाक्त करु। इन लोगों को मैं राख करु तो वह
दिन भी आएगा जब दुनियां रोएगी।
मैं गाऊंगा।
विषाणु बन त्रस जाऊंगा।
एक छोटा कण।
और कोरोना कहलाऊंगा।
Poem by sujatamishra
बस यही कहना चाहूंगी कुछ भी यूंही नहीं होता हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे कुछ और ही सच होते है, वैसे ही हर मुश्किलों के पीछे की अलग ही सच्चाई होती है।
हर चीज सजीव है अगर खुशियां दे जाए, हर चीज निर्जीव है अगर दिल दुखाये।
By Sujata Mishra
#corona #covid19
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