कोशिशों का दौर
एक पत्थर को पीट पीट कर मूर्ति बनाए जाने की कोशिश, जितना पीटते वह खंडित होता, लेकिन मूर्तिकार ने अंत तक हार न मानी, मुख्य टुकड़े को तरास्ता ही गया।
पहले भगवान बनाने की कोशिश की वह पत्थर टूट गया।
शिव जी बनाया तो दूजे तरफ उनकी मूछें टूट गई। तो अर्धनारीश्वर की शुरुआत हुई।
अर्ध नारी में केशों की लंबी लट ही ना रही।
और आगे सोच कर उसे पुरुष रूप ढालने लगे।
तो एक प्रहार से धर अलग। अब धर को चन्द्र की संज्ञा दी तो रूप में सुंदरता नदारत थी।
अब चन्द्र तो न बन सकता था क्योंकि चन्द्र सुंदरता के प्रतिरूप थे, तो क्या बनाऊं चलो बन जाने के लिए एक प्रहार तो ये क्या ?
इस आकृति को क्या नाम दे। कुछ समझ नहीं आया। पर इस आकृति ने मन मोह लिया था।
अब तो प्रहार करने का भी मन ना था। ऐसी सूरत भोली भाली खुद ब खुद जैसे पत्थर ने मन में ठान रखा था बनूंगा तो जय श्री राम का भक्त हनुमान।
जय श्री राम
Story by Sujata Mishra
9868663467
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