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कठपुतलियों कि डोर

ये कहानियां सिखाती है जरा सोचो और समझो बोलती इन कठपुतलियों कि डोर टूट जाएगी अपनी जिद अपनी जिद से न खींचों न खींचों ख़ामोश है ये सदा  आवाज तो तुम ही हो इनकी इनकी अठखेलियों से  तुम भी तुम ही  हसती हसाती जीवन को चलाती कुछ तो समझो बेबसी इनकी जिनको  तुम हो नाचती। क्या बोलती क्या जोड़ती खुद ही तोड़ती टूटती तो भी मुस्काती  क्यूंकि मैं इक कठपुतली डोर से बंधी  डोर से जुड़ी जुड़ी हुई ईश्वर के डोर से। Written  By Sujata Mishra  #Latest #poem #new #thread #stream #chess #dance #fault #life #god #happiness #sadness #human #I